छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर की सीमाएं उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की सीमाओं को छूती है। यहां का लगभग 60 फीसदी हिस्सा हरे-भरे जंगलों, पश्चिमोत्तर भाग ऐतिहासिक अबूझमाड़ी, आदिवासी पहाड़ियों व दक्षिणी हिस्सा बैलाडीला की खनिज खदानों से घिरा हुआ है। कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान का फैला हुआ घना एवं भयानक जंगल, विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, प्राचीन एवं रहस्यमयी गुफाएं, सुंदर जलप्रपात और नदियां, जैववैज्ञानिकों, रोमांचकारी खेलों के शौकीन व कलाकारों के लिए स्वर्ग समान है। मां दंतेश्वरी,बस्तर राजघराने की देवी हैं। कहा जाता है कि देवी इन घने पहाड़ी जंगलों मे राजा की रक्षा करते हुए उसका मार्गदर्शन करती है। दशहरा बस्तर का सबसे बड़ा, भव्य व प्रमुख त्यौहार है। मगर इसका श्रीराम अथवा उनके अयोध्या लौटने से कोई संबंध नही है। यह पर्व दंतेश्वरी देवी को समर्पित होता है। प्रकृति यहां आपको अपने संपूर्ण रूप में स्वागत करती हुई सी प्रतीत होगी।

बस्तर की जनसंख्या में करीब तीन चौथाई लोग जनजातियों के हैं जिसमें से हर एक की अपनी मौलिक संस्कृति मान्यताएं, बोलियां रीति-रिवाज और खान-पान की आदतें हैं। बस्तर की जनजातियों में गोंड जैसे- मरिया, मुरिया, अबूझमाड़ी,धुरवा(परजा) और डोरिया शामिल है। साथ ही अन्य समूह जो कि गोंड नही है जैसे भतरा और हल्बा शामिल हैं। आप बस्तर में कहीं भी घूम रहें हों, हाट( स्थानीय बाजार) की ओर जाते हुए जनजातीय लोगों को उनकी वेशभूषा में पूर्ण सजे-धजे देख सकते हैं। गोंड जाति की सबसे महत्वपूर्ण उपजनजाति अबूझमाड़ी शर्मीले व संकोची होते हैं। नृत्य महोत्सव के दौरान सींगों से सजे मुकुट पहनने के लिए जाने जानी वाली जनजाति मड़िया सामाजिक होती है। उत्तरी बस्तर की खेती किसानी करने वाली मुरिया जनजाति सबसे अधिक व्यवस्थित होती है व घोटुल के कारण जानी जाती है। यह युवा एवं कुंवारे लड़के-लड़कियों के लिए एक विशेष स्थान होता है जहां वे बड़ों से दूर आपस में मिल सकते हैं। यहां उनकी सामाजिक शिक्षा की खास व्यवस्था होती है जिसमें नृत्य, गीत-संगीत आदि भी शामिल होते हैं। यह प्रथा मुरिया समाज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।






देवी-देवताओं पर आस्था रखने वालों को जहां दंतेवाड़ा स्थित माई दंतेश्वरी का देवालय सुकून और शांति प्रदान करता है वहीं प्राचीन और पुरातत्व प्रेमियों के लिए बारसूर का गणेश मंदिर, मामा-भांजा मंदिर, नारायणपुर का विष्णु मंदिर, भद्रकाली का मंदिर तथा पुजारी कांकेर के धर्मराज का मंदिर भी आकर्षण का केन्द्र है। पुरातत्व के शोधकर्ताओं के लिए कई गांवो में अटूट पुरातात्विक संपदा बिना उत्खनन के पड़ी है। अनेक अज्ञात टीले आज भी रहस्य बने हुए हैं।

बस्तर के अंतर्गत दर्शनीय जगहें--
कांकेर,केशकाल,गढ़धनौरा, नारायणपाल,भोंगापाल, समलूर, चिंगीतराई, बड़े डोंगर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बैलाडीला लौह अयस्क परियोजना,बारसूर,हांदावाड़ा जलप्रपात,बीजापुर,भैरमगढ़,कोण्डागांव,जगदलपुर, चित्रकोट,कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान।
कैसे पहुंचे बस्तर-
वायु मार्ग:- रायपुर (295किलोमीटर) निकटतम हवाई अड्डा है जो कि मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची,विशाखापट्नम और चेन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग-
रायपुर ही निकटतम रेल्वे जंक्शन है।
सड़क मार्ग-
रायपुर से निजी वाहन एवं यात्री वाहन पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं।
और अधिक जानकारी के लिए संपर्क-
छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल
पर्यटन भवन, जी ई रोड
रायपुर, छत्तीसगढ़
492006
फोन- +91-771-4066415
मूल आलेख:संजय सिंह। तस्वीर सौजन्य रुपेश यादव फोटोग्राफर। सभी तस्वीरों पर कॉपीराईट रुपेश यादव का है जो वर्तमान में रायपुर के अंग्रेजी दैनिक हितवाद से जुड़े हुए हैं।
5 comments:
बहुत ही अच्छी तरह जानकारी दी है. आभार इस आलेख के लिए.
संजीत जी..
बस्तर पर्यटन की दृष्टि से अभी भी उपेक्षित ही है, इसकी अपार संभावनायें इस क्षेत्र में सन्निहित हैं। आपका आलेख सारगर्भित है। बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
"so wonderful and interesting article to read about and pic are ming blowing, nice plays to visit also"
Regards
बस्तर सचमुच बहुत खूबसूरत है...वहाँ की संस्कृति मुझे बहुत लुभाती है!मैं हांलाकि बस्तर कभी नहीं गयी हूँ लेकिन मेरे कई दोस्त छत्तीस गढ़ के हैं...उनसे बहुत सुना है! बहुत अच्छी जानकारी दी!
बस्तर मैने दो दिन देखा है; लगभग दो दशक पहले। और छवि अब भी कायम है मन में। देखें फिर कब मौका मिलता है।
पोस्ट के लिये धन्यवाद संजीत।
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