
लखनऊ ,अप्रैल। उत्तर प्रदेश में अन्ना हजारे के अभियान का असर राजनैतिक दलों पर दिखाई देने लगा है । बुद्धिजीवियों में जहां अन्ना हजारे को लेकर मतभेद भी सामने आए है वही कुछ राजनैतिक दलों ने हजारे से उत्तर प्रदेश में आने की मांग की है । समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज यहां कहा कि अन्ना हजारे को उत्तर प्रदेश में आना चाहिए यहां उनकी ज्यादा जरुरत है ,पर उनको सावधान रहना चाहिए कही उनके साथ मायावती सरकार भी वही सलूक करे जो हम लोगों के साथ किया था । वाम लोकतांत्रिक ताकतों के गठबंधन जन संघर्ष मोर्चा ने भी उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हालत को देखते हुए अन्ना हजारे के अभियान का न सिर्फ समर्थन किया बल्कि उन्हें प्रदेश में लाने के प्रयास में है । भारतीय जनता पार्टी ने भी हजारे से उत्तर प्रदेश में अपना अभियान छेड़ने की अपील की है । दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी के कई मंत्री अब सतर्क हो गए है और विभाग के आला अफसरों को साफ़ कर दिया है कि अब किसी भी ठेके आदि में माफिया का दखल नही होना चाहिए ।
दूसरी तरफ गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की तारीफ़ पर बुद्धिजीवियों ने हजारे को लेकर सवाल खड़ा किया है । गौरतलब है कि हजारे के समर्थन में बड़ी संख्या मे मुस्लिम भी जुटे थे जो इस टिप्पणी से काफी आहत है । पत्रकार वजीहा ने कहा - हजारे के इस बयान से धर्मनिरपेक्ष लोगों को दुःख हुआ है । वैसे भी हजारे के साथ के कुछ लोगों का भाजपा से संबंध सार्वजनिक हो चुका है । ऐसे बयान से उनके अभियान को झटका लगेगा । लखनऊ विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर प्रमोद कुमार ने कहा - हजारे के अभियान से देश या प्रदेश में मुझे ज्यादा बदलाव की उम्मीद नही है । देश ने जेपी से लेकर वीपी तक का आंदोलन देखा है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ ही था पर उस सबके बावजूद व्यवस्था नही बदली फिर एनजीओ वाली टीम से क्या बदलाव आ सकता है । राजनैतिक विश्लेषक और वकील सीएम शुक्ल ने कहा -उत्तर प्रदेश में हजारे का रास्ता आसान है - अगर उनका धरना लखनऊ में होता तो सूबे की सरकार हजारे को किसी फर्जी मुक़दमे में फंसा कर निपटा भी सकती थी । जो लोग यहाँ हजारे के समर्थन में धरने पर बैठे थे उन्हें गिरफ्तार करने हसनगंज थाने की पुलिस पहुंच गई थी और दरोगा ने वारंट मांगने पर कहा था - हमारे पास सारी पावर है किसी को भी अंदर कर दूंगा । पत्रकारों के पहुचने पर ही पुलिस वहां से गई ।यह उदाहरण है जिसे हजारे को ध्यान रखना चाहिए उत्तर प्रदेश में कुछ भी हो सकता है ।
बावजूद इसके हजारे के आंदोलन का क्या असर हुआ है इसे दो उदाहरण से समझा जा सकता है । पूर्वांचल के डान अबू सलेम के भाई अबू जैस ने आजमगढ़ के मुबारकपुर से टिकट मांगा था और पैरवी भी कुछ नेताओं ने की । टिकट तय हो रहा था तभी हजारे का अनशन शुरू हुआ और तीन दिन पहले जब समाजवादी पार्टी की सूची सार्वजनिक हुई तो उसका टिकट कट चुका था । दूसरी तरफ बसपा के एक वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन ने हाल
ही में जब कुछ विभागों की समीक्षा बैठक की तो अफसरों को साफ़ कर दिया कि किसी भी ठेके में अब माफिया का दखल बर्दाश्त नही होगा । इसी दखल के चलते लखनऊ में दो दो बड़े अफसरों की हत्या हो चुकी है । हजारे के आंदोलन का असर पड़ा है और बहस भी शुरू हुई है । धुर वामपंथी मान रहे है कि हजारे के आंदोलन को कामयाब कराकर कांग्रेस ने अपना फायदा किया है ।पर साथ यह भी कह रहे है कि इस आंदोलन को भाजपा का अप्रत्यक्ष समर्थन रहा है । दूसर हजारे के साथ जो लोग है उनका दक्षिण पंथी ताकतों से संबंध है और महाराष्ट्र में शिवसेना हजारे साथ साथ है ।
पर हजारे समर्थकों का तर्क अलग है वामपंथी कार्यकर्त्ता राम किशोर ने कहा - वीपी सिंह की सरकार को भाजपा और वाम दलों दोनों का समर्थन था । यह बात लोग भूल जाते है ।फिर जिस आंदोलन की मदद भाजपा करे उसका फायदा कांग्रेस ले लेगी यह तर्क किसी के गले नही उतरता ।आंदोलन म तरह तरह के लोग आते है । इंदिरा नगर में तो नारा लग रहा था -अन्ना हजारे जिंदाबाद ,पप्पू चौरसिया जिंदाबाद । ऐसे नारे से न तो हजारे का कद कम हो जाएगा और न ही कोई चौरसिया का कद बढ़ जाएगा ।आज जनसत्ता में प्रकाशित खबर